मेरे चारों ओर मनुष्य हैं बड़े- © कामिनी मोहन पाण्डेय।'s image
Poetry1 min read

मेरे चारों ओर मनुष्य हैं बड़े- © कामिनी मोहन पाण्डेय।

Kamini MohanKamini Mohan April 3, 2022
Share0 Bookmarks 52423 Reads1 Likes
मेरे चारों ओर मनुष्य हैं बड़े,
अपार मन का भार लिए हैं खड़े। 

वो उदार है जो राह में पड़े,
गिरे मन का भार थामने को खड़े। 

उनके स्वागत को क्या कहे,
उदारता की चादर ओढ़े जो रहे। <

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts