ख़्याल द्रुत  हो  या  कि  विलंबित- कामिनी मोहन।'s image
Poetry1 min read

ख़्याल द्रुत  हो  या  कि  विलंबित- कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan July 17, 2022
Share0 Bookmarks 159 Reads1 Likes

ख़्याल द्रुत  हो  या  कि  विलंबित,
सुने हम हर्षनाद निनाद हर कहीं।
सुरभित   वसंत   न   हो   खण्डित,
धवल  पुष्प व्यापित हो  हर कहीं।

रंजित वर्जित कुछ भी हो भले कहीं,
जीवन रुके नहीं चलता रहे हर कहीं।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts