कहने तक
-© कामिनी मोहन।'s image
Poetry1 min read

कहने तक -© कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan August 11, 2022
Share0 Bookmarks 54708 Reads2 Likes
कुछ तलाश करते
हम सब चल रहे।
चलते-चलते
बंद रास्ता दिखे तो
रास्ता बदलकर आख़िर तक
चलने की कोशिश कर रहे।

हैं जो रूके हुए
वे भी साँसों की आवाज़े सुन रहे।
हैं छायाएँ ख़ाली पर
सरसराहटों को बुन रहे।

चले या रूके
अंततः सब ख़ारिज स्मृतियाँ
यूँ ही पड़े-पड़े
काग़ज़ों के बोझ में बदल जाएँगी।
गुज़रे लोगों की
भावुकतापूर्ण समीक्षाएँ
जो कुरेदी

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts