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प्रेम की भाषा, प्रेम की बोली,
सदा सुकुमार हृदय की रंगोली।
आँख जो देखतीं, कान जो सुनतीं,
प्रेम-पुष्प चुन तरन्नुम बुनतीं।
धरा पर निर्झर सेवित प्रेम धार है,
कंटक मुक्त होते जहॉं वो बहार है।
शादाब कँवल की दास्ताँ आबाद है,
हर याद में प्रेम के ग़ुंचे शादाब है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
सदा सुकुमार हृदय की रंगोली।
आँख जो देखतीं, कान जो सुनतीं,
प्रेम-पुष्प चुन तरन्नुम बुनतीं।
धरा पर निर्झर सेवित प्रेम धार है,
कंटक मुक्त होते जहॉं वो बहार है।
शादाब कँवल की दास्ताँ आबाद है,
हर याद में प्रेम के ग़ुंचे शादाब है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
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