ज़िंदगी यदि संघर्षमय न हो तो ज़िंदगी नहीं है, तो जो व्यक्ति क्रोध में झल्लाया करता है, उसकी आस्तिकता, अस्थिर व डांवाडोल रहती है। शोकसंतप्तता और उद्विग्नता मनुष्य के लिए चुनौती है। जीवन में जिस किसी ने भी थोड़ी-सी असफलता एवं प्रतिकूलता सहन नहीं की, उसकी आध्यात्मिकता उससे दूर ही रहती है।
प्रतिकूलता, असहजता और डर हमारे साहस को मजबूत करते हैं। हमारी ताक़त को बढ़ाते हैं। हमारी छोटी से छोटी उपलब्धि में भी हँसना सिखाते हैं, जो मिला है उसमें संतोष का भाव लाते हैं। भविष्य की शुभ संभावनाओं की कल्पना करके प्रमुदित रहना सिखाते हैं।
हम सब एक दूसरे को समझाते हैं कि दुःख बाँटने से कम होता है, जबकि ख़ुशी बाँटने से बढ़ती जाती है, लेकिन जब यही बात ख़ुद को समझाने की आती है तो समझा नहीं पाते हैं।
शब्दों पर भरोसा भले न हो पर कार्यों पर भरोसा करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने नियमित सोचने के पैटर्न को पूरी तरह से छोड़ दें। मन को, अपनी ऊर्जा को स्वच्छ रखे। नित नए उच्च कम्पित विचारों और भावनाओं को शामिल करें। जो शाश्वत और सदैव मौजूद है उसके बारे में जानते हुए बहुस्तरीय और बहुमुखी प्रतिबिंब को निहारने की कोशिश करें। हमारी पूर्णता तभी दर्शित होगी जब देखने का लालित्य निरंतर आहटों से भरा हो।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments