222.उद्विग्नता मनुष्य के लिए चुनौती

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222.उद्विग्नता मनुष्य के लिए चुनौती -© कामिनी मोहन पाण्डेय।

Kamini MohanKamini Mohan February 13, 2023
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ज़िंदगी यदि संघर्षमय न हो तो ज़िंदगी नहीं है, तो जो व्यक्ति क्रोध में झल्लाया करता है, उसकी आस्तिकता, अस्थिर व डांवाडोल रहती है। शोकसंतप्तता और उद्विग्नता मनुष्य के लिए चुनौती है। जीवन में जिस किसी ने भी थोड़ी-सी असफलता एवं प्रतिकूलता सहन नहीं की, उसकी आध्यात्मिकता उससे दूर ही रहती है। 

प्रतिकूलता, असहजता और डर हमारे साहस को मजबूत करते हैं। हमारी ताक़त को बढ़ाते हैं। हमारी छोटी से छोटी उपलब्धि में भी हँसना सिखाते हैं, जो मिला है उसमें संतोष का भाव लाते हैं। भविष्य की शुभ संभावनाओं की कल्पना करके प्रमुदित रहना सिखाते हैं।

हम सब एक दूसरे को समझाते हैं कि दुःख बाँटने से कम होता है, जबकि ख़ुशी बाँटने से बढ़ती जाती है, लेकिन जब यही बात ख़ुद को समझाने की आती है तो समझा नहीं पाते हैं। 

शब्दों पर भरोसा भले न हो पर कार्यों पर भरोसा करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने नियमित सोचने के पैटर्न को पूरी तरह से छोड़ दें। मन को, अपनी ऊर्जा को स्वच्छ रखे। नित नए उच्च कम्पित विचारों और भावनाओं को शामिल करें। जो शाश्वत और सदैव मौजूद है उसके बारे में जानते हुए बहुस्तरीय और बहुमुखी प्रतिबिंब को निहारने की कोशिश करें। हमारी पूर्णता तभी दर्शित होगी जब देखने का लालित्य निरंतर आहटों से भरा हो। 

तर्कपूर्ण जीवन प्रगति के लिए है। यह आत्मा की खोज की ओर ले जाने के लिए है। हम जितना अधिक खोज में सफल होते हैं। हम उतना ही स्वयं के बारे में सीखते जाते हैं। ऐसा जो छिछले स्तर पर नहीं बल्कि गहरे स्तर पर होता है। इसमें हमारा चरित्र हमारे स्वयं के हृदयाकाश के हर हिस्से से झलकता है। 

इसमें हमारी मदद कृतज्ञता करती है। कृतज्ञता ब्रह्माण्ड के चमत्कारों को पूरी तरह से देखना सक्षम बनाती है। इसलिए, हमें छोटी से छोटी और महत्वहीन वस्तुओं के लिए कृतज्ञ होना चाहिए।

चूँकि ब्रह्माण्ड हमारे ही कम्पन को प्रतिबिंबित करता है, तो हम जैसा आकर्षण या विकर्षण उत्पन्न करते हैं वैसी ही आवृत्तिगत ऊर्जा हमें घेरे रहती है। पंखुड़ियों के केंद्र में जैसे एक ख़ालीपन है। सब कुछ है, पर कुछ भी नहीं में कुछ है। ठीक ऐसे ही सभी वैचारिक रास्तों से परे अनंत काल सभी चीज़ों को एक साथ देख रहा है। उसमें सब है भी और काल में विलीन होकर नहीं भी। 

जैसे सपनों के बारे में सपना, बेदाग में दाग, बिना किसी चीज़ का पदार्थ, अविश्वास में विश्वास, झूठ में सच, हर राह पर गुमराह चल रहा। फिर भी सभी के भीतर स्थिर संतुलित प्रवाह, छिपी हुई समरूपता, लालित्य, आंतरिक गतिशीलता, चिंतनशील संकल्प-विकल्प  हमारी स्पष्टता के रूप में शुद्ध अनंत शाश्वत का ही दर्शन है।

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