Share0 Bookmarks 49537 Reads1 Likes
कला स्वभाव से जन्मी एक नियमबद्ध अनुकृति है।कला सदैव मनुष्यकृत नियमों का समर्थन करती है।कला प्रकृति के सौन्दर्यात्मक पक्ष के सद्व्यवहार का अनुकरण करती है। यदि जीवन से कृत्रिमता को निकाल दिया जाय तो जो दृश्य रूप-रंग लेकर शोभायमान होता है, वह स्वत:स्फूर्त कला है। कला जीवनाशक्ति का परभृत प्रतिबिंब है।
दर-अस्ल, समूचे ब्रह्माण्ड में लय है। हमारी धड़कन में लय है हमारे रक्त प्रवाह में लय है। पूरी प्रकृति लय में है, इसीलिए, प्रत्येक वस्तु लय में ही अभिव्यक्त होती हैं।
गायन, वादन, नृत्य में लय है। सब एक ही चेतना शक्ति से ओतप्रोत है। जहाँ जितनी जरुरत है वहाँ उतनी शक्ति दिखती है। पशु, पक्षी, नर-नारी, देवता गण सभी ख़ुशी को अपनी आवाज़ और भाव-भंगिमाओं से प्रकट करते हैं। सब एक लय में नृत्यरत दिखते हैं। इस लय का मानस में प्रयोज्य प्रयोग से कला प्रतिष्ठित होती है।
हर कला में रचनात्मक पहचान लिए साहित्य है। यह मनुष्य की चेतना का सरल उद्दीपन है। साधना-आराधना और प्रेम के कारण मानस में उपजी कला केवल एक लफ़्ज़ नहीं है। यह एक पूरा फ़िक़्रा है। कलाकार, फ़नकार, नग़्मा-निगार जनमानस में प्रेम का एहसास पैदा करता है। उसके द्वारा परोसे गये लफ़्ज़
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments