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नारी का सौन्दर्य ❤
मेरी ज़ुल्फें क्या लहराईं,घटा घनघोर छाई है।
सुना है आज वर्षा भी, धरा से मिलने आई है।
मैने पलकें उठायीं क्या,हुआ सारा जहाँ रोशन।
ज़रा नज़रें झुकी कि बस,अंधेरी रात छाई है।
अभी मैं मुस्कुरायी थी,कि बस गिरने लगी बिजली।
समझ कर फूल होंठों को,कहीं मंडराये ना तितली।
ज़रा बागों मे आयी थी,कि कदमों मे झुकी डाली।
मेरे आँचल के उड़ते ही,हवा बहती है मतवाली।
मेरी बातें लगें जैसे,कोई मिश्री सी घुल आयी।
मैं जब चलती हूँ लगता है,कोई हिरनी चली आयी।
कभी कुछ गुनगुनाती हूँ,तो कोयल भी बहक जाती।
मैं जब अंगड़ाई लेती हूँ,फ़िज़ा सारी महक जाती।
कामिनी मिश्रा
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