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उन्हें मेरी ख़ामोशी से तकलीफ़ हैं,
मगर लफ्जों के मायने वो कहां समझ सके,
उन्हें मुझसे कई शिकायतें हैं,
मगर मेरी शिकायतें वो कहां सुन सके ,
दिल खोल के रख दिया था हमने तो,
मगर इस दिल की गहराई वो कहां जान सके,
आ जाती थी सूरत पे रोनक उनसे,
मगर ये सूरत वो दिल में ना बसा सके,
अब देर बहुत हो गई है,
रिश्ता दिल से निभाने का न मेरा मन है,
न उनका मन है।
बिखरी है मीलों तक बस ख़ामोशी....
बस ख़ामोशी.....
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