बिक चुका तंत्र's image
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तुम चीखते रहो चिल्लाते रहों 

फिर भी वो उसे नाटक समझेंगे ,


बेच डाला जिन्होने खुद को

वो तुम्हारा दर्द क्या समझेंगे ,


यही तो मेरे देश का सिस्टम है 

तुम रोते रहो वो उसे खेल समझेंगे ,


समय से तो पहुची थी परीक्षा देने 

भ्रष्ट तंत्र ने उसे परीक्षा मे बैठने न दिया ,


समय से ही टहला दिया उसे इस गेट से उस गेट तक 

मगर बिके हुए लोगों ने उसे जाने न दिया ,


वो भी माँ बाप की उम्मीद पूरा करना चाहती थी 

अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी ,


मगर कुछ अपने आप को बेच चुके 

शिक्षकों ने उसे परीक्षा मे बैठने न दिया ।।


- जीतेन्द्र मीना , गुरदह


( सीकर के श्री कल्याण कॉलेज में छात्राओं को रीट परीक्षा के लिये घुसने नही दिया गया , कविता इसी घटना पर आधारित है )

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