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माँ शारदे की प्रीत थीं
बसती रहीं हर हृदय में,
बन भोर की उद्गीत थीं ।
शिशुकाल में लोरी सुना
वो माँ सी मन पे छा गईं
हर यौवना को प्रीत धुन से
चाँद पर पहुँचा गईं
प्रेम की सरगम सुहानी
हर हृदय की मीत थीं
दुख की घड़ी सुख का मिलन
हर भाव सिंचित हो नयन
ले आबरू कर जुस्तजू
जुड़ता रहा हर आम जन
टूटे हुए की आसरा
हारे हुए की जीत थीं
कौतुकी आवाज़ का
कायल रहा संसार सुन
गौण हो जाती कृति
मधु सी बहे रसधार धुन
वागीश्वरी की नंदिनी
लेती ह्रदय वे जीत थीं ।।
**जिज्ञासा सिंह**
(स्वरचित एवम मौलिक)
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