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क्यों ही ढली थी उस रोज़ वो शाम,
क्यों ही कहदी उसने ऐसी वो बात,
जिसके साथ गुज़ारनी थी ज़िंदगी,
छुट गया हमारे हाथों से वो ही हाथ,
माँगी उसने अपनी ख़ुशियाँ ही कुछ इस तरह से हमसे,
ना जाने दे सके सके उसको ना ही रोक पाए अपने साथ!!
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