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मुद्दतो से इंतज़ार था जिन्हें वो मुद्दत का
वो मुद्दत भी आई तो सिर्फ मुद्दत बढ़ाने के लिए।
सर्दी गर्मी या बारिश मैं कमाने जाते थे जो हररोज,
हालातों के मारे, चूल्हे भी ठंडे पड़े है आंच जलाए हुए।
आए थे कुछ फरिश्तो चोखट पे ले कर थोड़ी खुशियाँ,
नम आंखें और दिल पर पथ्थर रखकर भेज दिया वापस ना कह कर।
बेशक ज़िंदा है इंसानियत वरना पराए भी दरवाज़े आए ना होते,
पर अभिमान तो सबका होता है यूँ तसवीर खिंचके काश उसे गिराए तो ना होते।।
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