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अर्थ अर्थ अर्थ है,अर्थ हीं यथार्थ है,
राज रंग वेषभूषा रीति प्रीती अर्थ है।।
अर्थ एक राग हैं अर्थ एक द्वेष है,
अर्थ कहीं भाग है तो अर्थ कहीं शेष है।
अर्थ कहीं आज हैं अर्थ हीं आगाज हैं,
अर्थ बिना व्यर्थ दिन अर्थ हीं सामर्थ्य है।।
अर्थ एक तेज कहीं अर्थ हीं तमीज हैं,
अर्थ प्रतिभा की धारा अर्थ हीं कमीज हैं,
अर्थ हीं हैं मूल कहीं अर्थ कहीं शुल है,
अर्थ के बतौर सारी श्रीष्टी में उसूल है,
अर्थ दगाबाज कहीं अर्थ हीं निवेश है,
अर्थ बिना जिंदगी रहीं नहीं विशेष हैं।।
अर्थ साधु संत को तो अर्थ दुर्दांत को,
अर्थ विक्रांत को तो अर्थ है सीमांत को,
खोजें मजदूर कहीं खोजता किसान है,
मंजर मलंग अर्थ ढुंढ़ता जवान है,
बाल बच्चे बाग़ छोड़ अर्थ की लगीं है होड़,
दौड़ में लगे समाज के हरेक वर्ग है।।
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