
शहीदी दिवस चार साहबजादे और माता गुजरी को समर्पित

आज उन महान गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों और माता गुजरी की ज़िन्दगी की दास्तान प्रभु,नीलू दीदी और मेरी मां अपने बेटे सनी से लिखवाने वाले है।जब पढ़ेंगे साफ़ दिल वाले तो उनकी आंखों से आंसू जरूर निकलने वाले है।
1704आनंदपुर साहिब किले पर मुगल सेना और गुरु गोबिंद सिंह जी की फ़ौज के बीच किला छोड़ने को लेकर हमला हुआ।
ना चाहते हुऐ भी गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार एक दूसरे से हमेशा हमेशा के लिये जुदा हुआ।
बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह अपने पिता गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ निकल पड़े।
कौन भूल सकता है वो चमकौर के युद्ध को जब दोनों बड़े साहबजादे किस बहादुरी से थे लड़े।
देख के इन दोनों के होंसले मुगल सेना के होश थे उड़े।
तीर हुऐ थे दोनों साहेबजादो के पास खत्म।
लेकिन इतनी बहादुरी से दोनों भाई लड़े थे दिखा दिया था इन्होंने गुरु गोबिंद सिंह के बेटों में कितना है दम।
तलवारें भी टूटी।
लेकिन लड़ते रहे तब तक जब तक जिस्म से आखरी सांस ना छूटी।
मुगल सेना को ऐसी धूल चटाई।
अंत में लड़ते लड़ते दोनों बड़े साहबजादो ने शहीदी पाई।
नोकर गंगू माता गुजरी और दोनों छोटे साहबजादो को अपने घर लेकर के आया।
माता गुजरी और दोनों छोटे साहबजादो मेरे घर पर ठहरे हुऐ है ये बात खुद मुगल सेना को बता कर भी था आया।
कितना गिरा हुआ था नौकर गंगू थोड़े से ईनाम पाने के लालच में उसे माता गुजरी और दोनों छोटे साहबजादो
बाबा ज़ोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह पर ज़रा भी तरस ना आया।
उसी वक्त वज़ीर खान ने उन्हें बंदी बना कर महल में लाने का हुक्म सुनाया।
मुगल सेना ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहबजादो को बंदी बनाया।
फिर ठंडे बुर्ज में और वो हड्डियो को चीर देने वाली सर्दी।
वज़ीर खान ने माता गुजरी और छोटे साहबजादो को ठंडे बुर्ज में रख कर जुलम की सारी हदें पार थी करदी।
बाबा ज़ोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह को अपने महल में बुलाया।
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