
बच्चे जब घर आते हैं
बच्चे घर आते हें
हफ्ता दस दिनके लिए,
कभी दस दिन भी बहुत होते हैं।
वो आकर सवाल पूछते हैं,
वो तय कर देतेहैं खानेपीने की चीजें
आराम करने और घूमने फिरनेके घंटे
डाक्टर से मिल भी आते हैं।
लगता है जैसे सब कुछ
पहले से तय होता है,
उनका वापस लौटना भी
वापसी के टिकट साथ होते हैं।
वो कहते हैं आप यहीं गांव में ठीक हैं
हमारे साथ रहने की न ज़िद करें,
पापा शहर बहुत खराब हैं
वहां खतरे बेहिसाब हैं।
मैं खामोश उन्हे देखता हूं
और सोचता हूं, यह जवाब हैं,
जो खड़े किए थे कभी मैने
उनके सामने यह वही सवाल हैं।
उनके जाने के बाद ख्वाब से जगते हैं हम,
लगता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं
बस उनकी आहट आती हैं।
जैसे वह छोड़ गए हों कुछ चीज़ें
वह आवाज़ें देकर याद दिलाती हैं,
मुझे उस दुनिया के बारे में बताती हैं।
जिसको बनाने में मेरा जुर्म बताती है,
और बुरे ख्वाब की तरह बार बार सताती हैं।
#इस्लाम_शेरी
रचनाकाल 2018
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