
ओह! प्रिय प्रेयसी,
मोहब्बत में जो भी रस्में है,
जीवन जीने से लेकर,
साथ मरने तक की कसमें है,
वो जो कसमें खा चुके है हम दोनों,
और हमसे पहले भी प्यार के पुरोधा,
दिखावटी और प्रदर्शन से,
भरा यह जिस्मानी करतब,
मैं भी कमाल दिखाता हूं,
या फिर तुम मुझे बेमिसाल,
झील के उस पार मिलना,
नदी के मुहाने पर मिलना,
दूर जंगल को जाती,
टेडी-मेडी,
मुड़ी पगडंडी पर मिलना,
यह सब सुनियोजित आकर्षण है,
महान प्रमियों का,
प्रेम को प्रभावी बनाने के लिए,
किसी बड़बोले प्रेमी ने,
अपनी प्रेमिका से,
चांदनी रात को,
मज़ाकिया अंदाज में ही,
मुंहफट्ट बोल,
बोल दिए होंगे?
भला! हे, भोली प्रेमिका,
तुम कहां अनजान हो,
चांद-तारों की दूरी और आकार से,
मैं जानता हूं,
ये तो तुम्हारी मांग कभी नही थे,
लेकिन प्रेम में आई आधुनिकता,
और एक दो-बार की मुलाकात,
आज के आशिकों को,
खगोलशास्त्री बना ही देती है,
तुम्हारे इंतजार में तारें गिनने से लेकर,
तारें तोड़ने की बात,
भला! ऐसे ही कौन करता है,
प्रियतमा!, और यह तुम भी जानती हो,
प्यार में मांग से,
कभी मांग
नही भरी जा सकती....
~इन्द्राज योगी
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