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होंठों पर सजी गजल-सी है वो...

Indraj YogiIndraj Yogi September 16, 2021
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हृदय को सुना प्रेम का तराना,

कुछ यू करके तन को सुलाना,

बंद आंखों से देख तेरे सपने,

नित भोर कली-सा मुख चूम कर उठाता हूं,

होंठों पर मेरे सजी गज़ल-सी है वो,

जिसे मैं बेवक्त भ्रमर-सा गुनगुनाता हूं,



उठता हूं ख्वाबों की अंगड़ाई तोड़,

तेरी बाहों का आगोश छोड़,

तेरी जुल्फों-सा संवारता हूं,

मैं मेरे तन की चारपाई से,

कुछ इस तरह बिस्तर उतारता हूं,



सुरत को आंखों में बसा तेरी,

खुद को तेरे दर्पण में देखता हूं,

ख्वाबों को नहला,धुला,

आंखों से तेरी शहर देखता हूं,

फिर भी पता नही क्यों,

तेरी यादों का गर्द,

इन आंखों पर छा जाता है,

सर्द शामों में तेरा चेहरा,

धुंध-सा उभर आता है,



लौट आते है घर को जब,

मैं,ख्वाब,यादें,परिंदे सब,

बारी-बारी अपना वृतांत सुनाते है,

ये सब तन को मेरे खरी-खरी सुनाते है,

तन मेरा बिचारा,

हर बार मन से हारा,

साजिशे सभी उसी की,

ख्वाब,यादें,परिंदे,



मेरी छवि पर इल्जाम हैं,

कि मेरी आशिकी का अंजाम है,

कलम पकड़ कर भी,

कागज पर मुझे कहां आराम है,

कसमें,वादे,किस्से,

अब वो सभी हराम है,

बड़ा तड़पाती है यादें,

उसकी यादों में भी कहां आराम है



हां! सूखे होंठों पर सजा लेता हूं,

कुछ तरह दिल को सजा देता हूं,

आंखों को बंद कर,

अक्श उसका ऐसा उभारता हूं,

खंजर लिए हाथों में,

दिल में मेरे उतारता हूं,

दर्द से जब सिरह जाता हूं,

आंखों से पानी,

मुख से आह निकालता हूं

होंठों पर मेरे सजी गज़ल-सी है वो,

जिसे मैं बेवक्त भ्रमर-सा गुनगुनाता हूं,



दर्द को उसके सात सुरों में पिरो कर,

सांसों को वीणा पर रखता हूं,

बिताए पल उसके साथ,

लय-ताल में संजो कर,

उसकी यादों से घृणा कर,

मैं मन की तृष्णा शांत करता हूं,

बेराग से मेरे जीवन को,

मैं संगीत में गुनगुनाता हूं,

होंठों पर मेरे सजी गज़ल-सी है वो,

जिसे मैं बेवक्त भ्रमर-सा गुनगुनाता हूं,



तबले की थाप,

अब तो महसूस होती मुझे,

मेरे गालों पर थाप,

वीणा के तार,

मेरे हृदय को झंझाते,

मन मेरा मंजीरों-सा,

मेरे तन से टकराता,

आत्मा को मेरे भेद जाते,

सुर उसके बेसुरे से,

होंठों से चूम उसने,

बांसुरी-सी की हालत मेरी,

अब हर सांस पर बजता हूं,

तेरी यादों में मैं जब भी जगता हूं

होंठों पर मेरे सजी गज़ल-सी है वो,

जिसे मैं बेवक्त भ्रमर-सा गुनगुनाता हूं,



लिख दिए है मैने तो,

मुखड़े सभी एक-एक करके,

इस तरह गीत यह बनाया है,

तू आए संग मेरे,

जीवन मेरा संगीत बन जाएं,

धुनों का साथ मिल जाएं,

साजो से शब्द सज जाएं,

ओ! संगीतकार मेरे जीवन के,

फिर एक बार मैं गुनगुनाऊं,

होंठों पर मेरे सजी गज़ल-सी है वो,

जिसे मैं बेवक्त भ्रमर-सा गुनगुनाऊं

~इन्द्राज योगी

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