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माँ के अरमानों को मैंने
चूल्हे में जलते देखा है
माँ के जज़्बातों को मैंने
पर्वत से लड़ते देखा है
घूँघट की रस्मों को
क्या ख़ूब निभाया उसने
बेटी से बहू बनने का
हर फ़र्ज़ निभाया उसने
देर रात सिरहाने
आंखों को मलते देखा है
हाँ मैंने माँ के आंसुओं को
सूरज सा ढलते देखा है
हाँ देखा है मैंने
ममता की सूरत को
हाँ देखा है मैंने
दया की मूरत को
उसके भोले मन में मैंने
दीपक को जलते देखा है
हृदय से निर्मल धारा की
हिमालय पिघलते देखा है
माँ की पीड़ायें
तो बस माँ ही जाने
जग ने सुनाएं जिसे लाखों ताने
बचपन का पहला स्वर ही तो माँ होता है
उसके आँचल में ही बचपन जवां होता है
न जाने कितनों के हांथों से मैंने
उस आँचल को जलते देखा है
चंद रुपयों और अय्याशी के ख़ातिर
मैंने माँ को मरते देखा है।
मैंने माँ को मरते देखा है
साहिल मिश्रा
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