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तू साथ नहीं
पर तेरी सिलवटो कि चादर आज भी बिस्तर पे बिछा रखी है
आना हो तो आजाना दरवाजें कि चाभी आज भी पायदान के नीचे छिपा रखी है
और कैसे बताऊँ उन्हें की नींद क्यों आती नहीं
अपनी बेचैनि को हमने करवटों में छिपाए रखी है
और इंतज़ार हमे आज भी उनका इस कदर है
और इंतज़ार हमे आज भी उनका इस कदर है
की जान निकलने पर भी पलकें आपस में मिलती नहीं
हमने आज भी नज़रे चौखट पर टिकाए रखी है
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