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अंजाम से अनजान
सफ़र के अंत से बेखबर वो चले जा रहे थे
बुज़दिल ने छुप कर वार किया, प्यार के दिन को काला किया
कितनो के अपनों को मारा तो कितनो को है यतीम किया
पर ये वीर अपनी राख से फिर उठ खड़े हो जाएंगे
मां भारती के सपूत हैं ये बारूद से कहां मिट पायेंगे
तिरंगे में लिपटना तो शान है इनकी
ये दीप नहीं हैं ज्वाला हैं
इतनी आसानी से थोड़े बुझ जाएंगे
सफ़र के अंत से बेखबर वो चले जा रहे थे
बुज़दिल ने छुप कर वार किया, प्यार के दिन को काला किया
कितनो के अपनों को मारा तो कितनो को है यतीम किया
पर ये वीर अपनी राख से फिर उठ खड़े हो जाएंगे
मां भारती के सपूत हैं ये बारूद से कहां मिट पायेंगे
तिरंगे में लिपटना तो शान है इनकी
ये दीप नहीं हैं ज्वाला हैं
इतनी आसानी से थोड़े बुझ जाएंगे
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