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समस्याएँ इतनी ताक़तवर नहीं हो
सकती जितना हम इन्हें मान लेते हैं
ऐसा कभी नहीं हुआ है कि अंधेरों ने
कभी सुबह को ही ना होने दीया हो
चाहे कितनी भी गहरी काली रात हो पर
हर रात के बाद सुबह को तो होना ही हैं
क़ुदरत को निज़ाम जहाँ का चलाना है
समस्याएँ दी है तो हल भी तो दी ही है
अलग बात है कसौटी-ओ-इम्तिहान के
पल्ले-ओ-तराज़ू तोल राहत दी ही है
ग़र इस घड़ी बशर शबर करता है
तो आने वाली हर घड़ी सुकून की ही है
प्रभु तो दे के भी ओर छीन के भी परखेंगे
बंदे को चाहिए कि सदैव प्रसन्न ही रहे।
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