
हम, यात्राओं के साथी थे,
हम एक दूसरे में ठिकाना खोजा करते थे,
कभी मैं उसकी आँखो के रास्ते,
युगों -युगों के बीच की दूरी तय कर लेती थी,
कभी वो, मेरी बातों से होते हुए पहुँच जाता था,
क्षितिज के आख़िरी छोर पर,
जहाँ मिल जाते हैं, सारे चाहनेवाले,
कभी मैं उसकी हसी से होते हुए,
सुन लेती थी सारे देवताओं की हसी,
और कभी वो मेरे हाथ पकड़कर,
पार कर लेता था, वो सात आकाश,
जिनको पार कर सिद्धार्थ, बुद्ध बने थे,
कभी मैं उसकी पीठ से सटे सटे ,
देख पाती थी की जीवन उसके साथ खड़े रहने में है,
और कभी कभी मेरी समीपता में वो भाप लेता था,
मुक्ति का वो मार्ग, जो औरों को मिलता है,
पूरे संसार में भटकने और हारने के बाद,
हम, सारे युद्धों को रोकना चाहते थे,
सारे शस्त्रों को जलाना चाहते थे,
सारी सरहदें मिटाना चाहते थे,
और सारी घृणाओं को समाप्त करना चाहते थे,
हम वो सब होना चाहते थे,
और हम वो सब करना चाहते थे,
जो प्रेम में हुआ जा सकता है,
और प्रेम में किया जा सकता है,
हम, धरा से अंबर तक,
ये चरम सत्य लिखना चाहते थे,
जो संसार भूल गया था,
अपने आडंबर के अंधकार में,
की जीवन, एक महाभारत है,
और प्रेम है, गोविंद सा,
जो, तुम्हारा सारथी बन,
तुम्हें, वो सारी यात्राएँ पार कराएगा,
जो प्रेम में, तुम करना चाहते थे,
कदाचित्, गोविंद जानते हैं,
प्रेम में की गई यात्राओं का सुख,
और प्रेम में छूटी हुई यात्राओं का दुःख…!!
-हिना अग्रवाल
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