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क्या रफ़्तार थी जब रगों में था
उबाल जब हदों में था
नफ़रतों में जब बेइन्तिहा उबल गया
चश्मदीद दहल गया
कब आँखों में उतरा
कब ज़मीन पर बिखर गया
साथ साथ बस ख़याल
और सवाल बह रहा
अल्फ़ाज़ क्या कहने आय थे
क्या अनसुना रह गया
प्यार की भी ज़ुबान थी
हथियार ये क्या कह गया
जिस पर खौला छलका
मुझ सा ही दिख रहा
उस घर भी सोग है
मेरे घर भी मातम दिख रहा<
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