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कैसा ये वक्त है,
कुछ पता नही क्या हो रहा,
पता नही क्यूं अंदर से दिल ये रो रहा,
ना जाने किसकी तलाश है,
ना जाने क्यों ये मन उदास है।
खुद की कैफियत कैसे करूं बयान,
ना जाने क्यों सब बदला बदला सा लग रहा यहां।
ना जाने क्यों इन आंखों से नींद उड़ सी गई,
कितने मुसाफिरो के राहें भी मुड़ सी गई।
इक हसीन दौर खत्म होने को है,
इन सारे यारों, दोस्तो को हम खोने को है।
ना जाने आगे कौन क्या करेगा?
ना जाने कौन किसको याद रहेगा!
ना जाने क्यों आज–कल हौंसला गिर सा जाता है,
जब भी कोई हमसे ज्यादा निखर कर आता है,
ना जाने क्यों ला हासिल सा महसूस होता है,
जैसे हर रोज ये रूह
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