ना जाने's image
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कैसा ये वक्त है,

कुछ पता नही क्या हो रहा,

पता नही क्यूं अंदर से दिल ये रो रहा,

ना जाने किसकी तलाश है,

ना जाने क्यों ये मन उदास है।


खुद की कैफियत कैसे करूं बयान,

ना जाने क्यों सब बदला बदला सा लग रहा यहां।

ना जाने क्यों इन आंखों से नींद उड़ सी गई,

कितने मुसाफिरो के राहें भी मुड़ सी गई।


इक हसीन दौर खत्म होने को है,

इन सारे यारों, दोस्तो को हम खोने को है।

ना जाने आगे कौन क्या करेगा?

ना जाने कौन किसको याद रहेगा!


ना जाने क्यों आज–कल हौंसला गिर सा जाता है,

जब भी कोई हमसे ज्यादा निखर कर आता है,

ना जाने क्यों ला हासिल सा महसूस होता है,

जैसे हर रोज ये रूह अहसूस होता है।


ना जाने जिंदगी में क्या करना है?

दूसरों के, या खुद के ख्वाब जीयूं,

इस ज़ुल्मी दुनिया के ज़हर मैं कैसे पीयूं?


किसे अपना अतलीक मानू?

कौन सच में मेरी कामयाबी चाहता है, ये मैं कैसे जानू?


इक तो पता नही, 

ये फोन तबाही है या इनायत?

पर हां इसमें डूबे रहने की बन गई है इक रिवायत।


ना जाने कैसे बचाऊं खुद को उन आदतों से,

झूठे उंस,लोग और इबादतों से।


ना जाने कब,कैसे और क्यूं क्या होगा?

खुदा जाने मेरा मुस्तकबिल क्या होगा?


आखिर में कहना है बस,

ज़ारी रखो अपनी कामयाबी की तिशनगी,

क्यूंकी कोई तुम्हारे लिए दुआ मांग रहा है कहीं।

– हर्षिता कीर्ति

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