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इस अंजान शहर में कैसे जीता हूं मत पूछ
तुझ से दूर जाना बहुत अख़रता है माँ
महंगे से महंगे होटलों में खाकर देख लिया
ये पेट तेरे हाथों की रोटियों से ही भरता है माँ
इक अरसा गुज़रा है रात भर जागते जागते
तेरी मीठी लोरी सुनने का मन करता है माँ
अच्छे अच्छों को धूल चटाने वाला तेरा लाल
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