दरिया की दुनिया (river's world)'s image
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दरिया में गिरती हुई बारिश की बूंदे देखिए

और सोचिए


कितना आसान है अपने आप को मिटा लेना

किसी दूसरे में समा जाना


दरिया के किनारे बैठे बैठे मैं ये सोचता हूं


कि दरिया में बहती हुई बारिश की बूंदे

कब इसकी परवाह करती हैं

कि वो एक दूजे से मुख्तलिफ हैं

वो कब परवाह करती हैं

वो कहां से आई हैं

कहां बह रही हैं

कहां जाएंगी


वो जब आसमां से आई थी तो मुख्तलिफ थी

दरिया में बह रही हैं तो साथ हैं

समंदर में जाएंगी तो साथ होंगी


मैं दरिया के किनारे बैठा ये सोचता हूं

कि क्या ये मुमकिन नहीं


कि हर शक्श इस दुनिया को छोड़कर

दरिया की दुनिया में बस जाए


जिस दुनिया में वो आए तो एक दूजे से मुख्तलिफ

लेकिन बूंदों की तरहा एक दूसरे के साथ रहे

और जब दुनिया से मुख्तलिफ हो

तो हर जाति मजहब की दीवारों को पार कर

वो सब इंसान हों

वो सब एक हों


मैं दरिया के किनारे बैठा

दरिया की दुनिया को देख रहा हूं

और सोचता हूं


कि ये दुनिया भी दरिया की दुनिया बन जाए

जहां कोई जाति नही

कोई मजहब नही

हम सब इंसान हों


मैं दरिया के किनारे बैठा

दरिया की दुनिया में जीने मरने को बेताब हूं


दरिया के किनारे बैठा मैं ये भी सोचता हूं

कि इस दरिया ए दुनिया में

हम साथ बह तो नही सके

लेकिन जब समंदर में मिलें तो हम सब साथ हों


मैं उस दुनिया के इंतज़ार में जी रहा हूं।



- Harshvardhan tiwari

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