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दरिया में गिरती हुई बारिश की बूंदे देखिए
और सोचिए
कितना आसान है अपने आप को मिटा लेना
किसी दूसरे में समा जाना
दरिया के किनारे बैठे बैठे मैं ये सोचता हूं
कि दरिया में बहती हुई बारिश की बूंदे
कब इसकी परवाह करती हैं
कि वो एक दूजे से मुख्तलिफ हैं
वो कब परवाह करती हैं
वो कहां से आई हैं
कहां बह रही हैं
कहां जाएंगी
वो जब आसमां से आई थी तो मुख्तलिफ थी
दरिया में बह रही हैं तो साथ हैं
समंदर में जाएंगी तो साथ होंगी
मैं दरिया के किनारे बैठा ये सोचता हूं
कि क्या ये मुमकिन नहीं
कि हर शक्श इस दुनिया को छोड़कर
दरिया की दुनिया में बस जाए
जिस दुनिया में वो आए तो एक दूजे से मुख्त
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