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मेरी लेखनी मेरी कविता
उठ जाता हूंँ भोर से पहले
सपने सुहाने नहीं आते,
अब मुझे स्कूल न जाने वाले
बहाने नहीं आते।।
कभी पा लेते थे घर से
निकलते ही मंजिल को,
अब मीलों सफर करके भी
ठिकाने नहीं आते ।।
यूं तो रखते हैं बहुत से
लोग पलकों पर मुझे,
उठ जाता हूंँ भोर से पहले
सपने सुहाने नहीं आते,
अब मुझे स्कूल न जाने वाले
बहाने नहीं आते।।
कभी पा लेते थे घर से
निकलते ही मंजिल को,
अब मीलों सफर करके भी
ठिकाने नहीं आते ।।
यूं तो रखते हैं बहुत से
लोग पलकों पर मुझे,
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