
Share0 Bookmarks 331 Reads1 Likes
मेरी लेखनी मेरी कविता
थोड़ा सा थका हूंँ मगर रुका नहीं हूंँ
(कविता)
थोड़ा सा थका हूंँ
मगर रुका नहीं हूंँ।
जिंदगी की हालातों के आगे
झुका नहीं हूंँ
कांच के रिश्ते लिए फिर रहा हूंँ
पत्थरों के शहर में
ठोकरें बहुत खाईं
मगर झुका नहीं हूंँ।
तेरी यादों को
दिल से लगा कर रखा है
भूला नहीं हूंँ।
यूंँ तो गम की बारिश
हो रही है मुझ पर
पर मेरे रब में भीगा नहीं हूंँ।
जितने थे तूफान गुजर गए
तेरी रहमत से
जाने किस की दुआ है
अभी तक जल रही है लौ
बुझा नहीं हूंँ।
थोड़ा सा रुका हूंँ
मगर झुका नहीं हूंँ।
हरिशंकर सिंह सारांश
थोड़ा सा थका हूंँ मगर रुका नहीं हूंँ
(कविता)
थोड़ा सा थका हूंँ
मगर रुका नहीं हूंँ।
जिंदगी की हालातों के आगे
झुका नहीं हूंँ
कांच के रिश्ते लिए फिर रहा हूंँ
पत्थरों के शहर में
ठोकरें बहुत खाईं
मगर झुका नहीं हूंँ।
तेरी यादों को
दिल से लगा कर रखा है
भूला नहीं हूंँ।
यूंँ तो गम की बारिश
हो रही है मुझ पर
पर मेरे रब में भीगा नहीं हूंँ।
जितने थे तूफान गुजर गए
तेरी रहमत से
जाने किस की दुआ है
अभी तक जल रही है लौ
बुझा नहीं हूंँ।
थोड़ा सा रुका हूंँ
मगर झुका नहीं हूंँ।
हरिशंकर सिंह सारांश
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments