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मेरी लेखनी ,मेरी कविता "श्याम रंग की आभा" (कविता) कोयल
कोयल तो,
कोयल होती है।
बागों में गाती है
सूनापन प्रकृति का मिटाती है।
सुरीले गीत
गुनगुनाती है।
वह जीवटता का
प्रतीक होती है।।
कोयल तो
कोयल होती है।।
रहती है, पेड़ों पर
झुंंडो में, डाली पर ,
खेतों में खदानों में, कूकती है ,गाती है ।
कोयल सृजनता का घोतक होती है ।
कोयल तो
कोयल होती है ।।
उड़ती है, नीले गगन में कभी ऊपर, कभी नीचे आती, जाती है ।
श्याम रंग की आभा
चहुुँ ओर फैलाती है।
बाग होंं, बगीचे हों
या हो जंगल ,इतराती इठलाती है।
जैविक और अजैविक सबको मीठा गीत
सुनाती है ।
वह स्वभाव से बड़ी कोमल होती है
कोयल तो
कोयल होती है।।
प्रफुल्लित करती है मन
उदासी को दूर भगाती है, निर्जन से वन में, चंचलता लाती है।
संसार भर के गीतों का आधार होती है।
कोयल तो,
कोयल होती है ।।
हरिशंकर सिंह सारांंश
कोयल तो,
कोयल होती है।
बागों में गाती है
सूनापन प्रकृति का मिटाती है।
सुरीले गीत
गुनगुनाती है।
वह जीवटता का
प्रतीक होती है।।
कोयल तो
कोयल होती है।।
रहती है, पेड़ों पर
झुंंडो में, डाली पर ,
खेतों में खदानों में, कूकती है ,गाती है ।
कोयल सृजनता का घोतक होती है ।
कोयल तो
कोयल होती है ।।
उड़ती है, नीले गगन में कभी ऊपर, कभी नीचे आती, जाती है ।
श्याम रंग की आभा
चहुुँ ओर फैलाती है।
बाग होंं, बगीचे हों
या हो जंगल ,इतराती इठलाती है।
जैविक और अजैविक सबको मीठा गीत
सुनाती है ।
वह स्वभाव से बड़ी कोमल होती है
कोयल तो
कोयल होती है।।
प्रफुल्लित करती है मन
उदासी को दूर भगाती है, निर्जन से वन में, चंचलता लाती है।
संसार भर के गीतों का आधार होती है।
कोयल तो,
कोयल होती है ।।
हरिशंकर सिंह सारांंश
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