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मेरी लेखनी ,मेरी कविता "श्याम रंग की आभा" (कविता) कोयल
कोयल तो,
कोयल होती है।
बागों में गाती है
सूनापन प्रकृति का मिटाती है।
सुरीले गीत
गुनगुनाती है।
वह जीवटता का
प्रतीक होती है।।
कोयल तो
कोयल होती है।।
रहती है, पेड़ों पर
झुंंडो में, डाली पर ,
खेतों में खदानों में, कूकती है ,गाती है ।
कोयल सृजनता का घोतक होती है ।
कोयल तो
कोयल होती है ।।
उड़ती है, नीले गगन में कभी ऊपर, कभी
कोयल तो,
कोयल होती है।
बागों में गाती है
सूनापन प्रकृति का मिटाती है।
सुरीले गीत
गुनगुनाती है।
वह जीवटता का
प्रतीक होती है।।
कोयल तो
कोयल होती है।।
रहती है, पेड़ों पर
झुंंडो में, डाली पर ,
खेतों में खदानों में, कूकती है ,गाती है ।
कोयल सृजनता का घोतक होती है ।
कोयल तो
कोयल होती है ।।
उड़ती है, नीले गगन में कभी ऊपर, कभी
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