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मेरी लेखनी मेरी कविता
शिकायत है जिंदगी तुझसे
(कविता)
प्यास लगी थी गजब की
मगर पानी में जहर था,
पीते तो मर जाते
और ना पीते तो भी
मर जाने का डर था ।।
बस यही दो मसले
जिंदगी भर हल् न हुए
ना नींद पूरी हुई
ना ख्वाब मुकम्मल हुए ।।
वक्त ने कहा
काश थोड़ा सब्र होता,
सब्र ने कहा
काश थोड़ा वक्त होता।
शिकायतें तो बहुत है
तुझसे ऐ जिंदगी,
पर चुप इसलिए हूंँ
क्योंकि जो तूने दिया
वह बहुतों को नसीब नहीं होता।।
हरिशंकर सिंह सारांश
शिकायत है जिंदगी तुझसे
(कविता)
प्यास लगी थी गजब की
मगर पानी में जहर था,
पीते तो मर जाते
और ना पीते तो भी
मर जाने का डर था ।।
बस यही दो मसले
जिंदगी भर हल् न हुए
ना नींद पूरी हुई
ना ख्वाब मुकम्मल हुए ।।
वक्त ने कहा
काश थोड़ा सब्र होता,
सब्र ने कहा
काश थोड़ा वक्त होता।
शिकायतें तो बहुत है
तुझसे ऐ जिंदगी,
पर चुप इसलिए हूंँ
क्योंकि जो तूने दिया
वह बहुतों को नसीब नहीं होता।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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