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मेरी लेखनी मेरी कविता 
फरियाद क्या करना ?

लिखा परदेश किस्मत में
 तो फिर घर बार क्या करना!
 अगर बेदर्द हाकिम हो
 तो फिर फरियाद क्या करना ?
 
मुझे अपनी ही गुरबत का
 तमाशा मार डाले है
 मुझे अपनों ने ठुकराया
 गैर की बात क्या करना.?
 अगर बेदर्द हाकिम हो
 तो फिर फरियाद क्या करना।।

प्रीत मतलब की होती है
 सुना हमने भी काफी है।
मेरे मजनून की खातिर 
फजल रिश्ता ही काफी है।।
अनकहे मीत के रिश्तो का
 इस्तकबाल क्या करना
 अगर बेदर्द हाकिम हो। 
तो फिर फरियाद क्या करना।।  

हरिशंकर सिंह सारांश 

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