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मेरी लेखनी मेरी कविता
किसी के दर पै यूंँ जाना
(छंद )
किसी के दर पै यूं जाना
हमें अच्छा नहीं लगता ।
जहांँ हर शख्स काबिल हो
मगर सच्चा नहीं लगता ।
बेगानों की शराफत के
कसीदे पढ़ नहीं सकता ।
मगर अपनों की तहरीरें
बयाँ मैं कर नहीं सकता ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
किसी के दर पै यूंँ जाना
(छंद )
किसी के दर पै यूं जाना
हमें अच्छा नहीं लगता ।
जहांँ हर शख्स काबिल हो
मगर सच्चा नहीं लगता ।
बेगानों की शराफत के
कसीदे पढ़ नहीं सकता ।
मगर अपनों की तहरीरें
बयाँ मैं कर नहीं सकता ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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