
Share0 Bookmarks 187 Reads1 Likes
मेरी लेखनी मेरी कविता
ख्वाब सतरंगी (कविता)
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है ?,
कभी रुलाती कभी हंसाती
क्या-क्या रोल कराती है ।
इस दुनियाँ की खातिर इंसां
जीवन भर खप जाता है,
सब कुछ पाने की चाहत में
आपा भी खो जाता है ।।
खट्टी मीठी है यह दुनियाँ
पल पल पर भरमाती है ।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है?
कभी रुलाती कभी हँसाती
क्या-क्या रोल कराती है ।।
सोच, सोच अच्छे दिन आएँ
समय निकलता जाता है,
जीवन की होती जब संध्या
मनुज बहुत पछताता है।
कल इससे अच्छा दिन होगा
यही सोच भरमाती है ।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है?
कभी रुलाती कभी हंसाती
क्या-क्या रोल कराती है ?
अपनेपन का खेल निराला
रिश्तो का जीवन है आला
देख देख रिश्तोँ की दुनियाँ
मनमें ग्लानि आती है।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है।
कभी रुलाती कभी हंसाती
क्या क्या रोल कराती है।
बदल गई है सोच सभी की
बदले रिश्ते नाते ,
जो बचपन के खेल निराले
अब हमको ना भाते ।
नियम नीति की नहीं कामना
चंचलता बलखाती है ।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है
कभी हँसाती कभी रुलाती
क्या-क्या रोल कराती है ।
कैसा प्रभु ने खेल रचाया
जीवन का एक चक्र बनाया।
मुश्किल है लोगों का बचना
सबको गोल घुमाती है।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है।
कभी रुलाती कभी हँसाती
क्या क्या रोल कराती है।।
हरिशंकर सिंह सारांश
ख्वाब सतरंगी (कविता)
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है ?,
कभी रुलाती कभी हंसाती
क्या-क्या रोल कराती है ।
इस दुनियाँ की खातिर इंसां
जीवन भर खप जाता है,
सब कुछ पाने की चाहत में
आपा भी खो जाता है ।।
खट्टी मीठी है यह दुनियाँ
पल पल पर भरमाती है ।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है?
कभी रुलाती कभी हँसाती
क्या-क्या रोल कराती है ।।
सोच, सोच अच्छे दिन आएँ
समय निकलता जाता है,
जीवन की होती जब संध्या
मनुज बहुत पछताता है।
कल इससे अच्छा दिन होगा
यही सोच भरमाती है ।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है?
कभी रुलाती कभी हंसाती
क्या-क्या रोल कराती है ?
अपनेपन का खेल निराला
रिश्तो का जीवन है आला
देख देख रिश्तोँ की दुनियाँ
मनमें ग्लानि आती है।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है।
कभी रुलाती कभी हंसाती
क्या क्या रोल कराती है।
बदल गई है सोच सभी की
बदले रिश्ते नाते ,
जो बचपन के खेल निराले
अब हमको ना भाते ।
नियम नीति की नहीं कामना
चंचलता बलखाती है ।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है
कभी हँसाती कभी रुलाती
क्या-क्या रोल कराती है ।
कैसा प्रभु ने खेल रचाया
जीवन का एक चक्र बनाया।
मुश्किल है लोगों का बचना
सबको गोल घुमाती है।
सतरंगी ख्वाबों की दुनियाँ
क्या-क्या खेल खिलाती है।
कभी रुलाती कभी हँसाती
क्या क्या रोल कराती है।।
हरिशंकर सिंह सारांश
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments