
Peace PoetryPoetry1 min read
February 7, 2022
जन्नत हमारी देखो पैगाम दे रही है । (कविता)पैगामे कश्मीर

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जन्नत हमारी देखो, पैगाम दे रही है ।
(कविता) पैगामेे कश्मीर
जन्नत हमारी देखो
पैगाम दे रही है
छँट रहा है कोहरा,
बादल भी छँट रहे हैं।
आतंक के वो बंधन
धीरे से कट रहे हैं।।
सत्ता में बैठे लोगो
बस एक काम कर दो,
झोली है जिनकी खाली, उनको खुशी से भर दो।
हरीशंकर सिंह सारांश
(कविता) पैगामेे कश्मीर
जन्नत हमारी देखो
पैगाम दे रही है
छँट रहा है कोहरा,
बादल भी छँट रहे हैं।
आतंक के वो बंधन
धीरे से कट रहे हैं।।
सत्ता में बैठे लोगो
बस एक काम कर दो,
झोली है जिनकी खाली, उनको खुशी से भर दो।
हरीशंकर सिंह सारांश
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