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मेरी लेखनी ,मेरी कविता
एैै गगन के श्याह बादल तू मुझे इतना बता
(कविता )
एै गगन के श्याह बादल
तू मुझे इतना बता|
दूर क्यों जाता है मुझसे
क्या बता मेरी खता?
चाह में उस मेघ के
आंँखें भी बोझिल हो रहीं।
कलियांँ भी नन्हे वृक्ष की
दिन रात झुरमुट हो रहीं।।
मेघ की चाहत उसे
ढांढस बंधाती है।
जगी जो प्यास जीवन में
उसे आंँसू दिलाती है ।
बिन मेघ के मुरझा रही
प्यारी लता।
एै गगन के श्याह बादल
तू मुझे इतना बता ।
दूर क्यों जाता है मुझसे
क्या बता मेरी खता?
कोयल शांत है
चुप्पी लगा रही है।
चंँचल मोर को,
सावन की याद आ रही है।
बोझिल निगाहें पूछतीं
तेरा पता।
एै गगन के श्याह बादल
तू मुझे इतना बता ।
दूर क्यों जाता है मुझसे
क्या बता मेरी खता ?
हरिशंकर सिंह सारांश
एैै गगन के श्याह बादल तू मुझे इतना बता
(कविता )
एै गगन के श्याह बादल
तू मुझे इतना बता|
दूर क्यों जाता है मुझसे
क्या बता मेरी खता?
चाह में उस मेघ के
आंँखें भी बोझिल हो रहीं।
कलियांँ भी नन्हे वृक्ष की
दिन रात झुरमुट हो रहीं।।
मेघ की चाहत उसे
ढांढस बंधाती है।
जगी जो प्यास जीवन में
उसे आंँसू दिलाती है ।
बिन मेघ के मुरझा रही
प्यारी लता।
एै गगन के श्याह बादल
तू मुझे इतना बता ।
दूर क्यों जाता है मुझसे
क्या बता मेरी खता?
कोयल शांत है
चुप्पी लगा रही है।
चंँचल मोर को,
सावन की याद आ रही है।
बोझिल निगाहें पूछतीं
तेरा पता।
एै गगन के श्याह बादल
तू मुझे इतना बता ।
दूर क्यों जाता है मुझसे
क्या बता मेरी खता ?
हरिशंकर सिंह सारांश
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