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मेरी लेखनी, मेरी कविता
"चंँचलता का समय बालपन, कोरे कागज जैसा ।(कविता)
शिक्षक विशेषांक
कोमल मन की
पंखुड़ियांँ हैंं,
इनको और
संवरने दो ।
ज्ञान पंँख
तुमने फैलाए
इनको और फैलने दो।
पिछला कार्य
पढ़ाई का था
निसंदेह ही अच्छा
मन से अपने
ज्ञानार्जन करता था
हर एक बच्चा ।
सच बतलाऊंँ
थोड़ा सा गर
तुम प्रयास कर जाओ, जीवन कंचन
बन जाएगा
जग में नाम कमाओ।
चंँ
"चंँचलता का समय बालपन, कोरे कागज जैसा ।(कविता)
शिक्षक विशेषांक
कोमल मन की
पंखुड़ियांँ हैंं,
इनको और
संवरने दो ।
ज्ञान पंँख
तुमने फैलाए
इनको और फैलने दो।
पिछला कार्य
पढ़ाई का था
निसंदेह ही अच्छा
मन से अपने
ज्ञानार्जन करता था
हर एक बच्चा ।
सच बतलाऊंँ
थोड़ा सा गर
तुम प्रयास कर जाओ, जीवन कंचन
बन जाएगा
जग में नाम कमाओ।
चंँ
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