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February 9, 2022
"चँचलता का समय बालपन कोरे कागज जैसा"(कविता) शिक्षक विशेषांक

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मेरी लेखनी, मेरी कविता
"चंँचलता का समय बालपन, कोरे कागज जैसा ।(कविता)
शिक्षक विशेषांक
कोमल मन की
पंखुड़ियांँ हैंं,
इनको और
संवरने दो ।
ज्ञान पंँख
तुमने फैलाए
इनको और फैलने दो।
पिछला कार्य
पढ़ाई का था
निसंदेह ही अच्छा
मन से अपने
ज्ञानार्जन करता था
हर एक बच्चा ।
सच बतलाऊंँ
थोड़ा सा गर
तुम प्रयास कर जाओ, जीवन कंचन
बन जाएगा
जग में नाम कमाओ।
चंँचलता का
समय बालपन
कोरे कागज जैसा
इस पर जो
लिख दिया
बनेगा उसका जीवन वैसा ।
गुरुजनों से
एक इंतिजा
बस तुम
इतना कर दो ।
चंँचल मन का
खाली कोना
ज्ञानामृत से भर दो।
तुम प्रयास निशदिन करते हो
नूतन ढंँग अपनाते, सदाचार का
पाठ पढ़ाते
खुद करके
दिखलाते ।
सब कुछ तुम पर
निर्भर करता
तुम हो
शिक्षक ज्ञानी ।
थोड़ी सी बस
यही इंतिजा
संयम रखो बानी।
हरिशंकर सिंह सारांश
"चंँचलता का समय बालपन, कोरे कागज जैसा ।(कविता)
शिक्षक विशेषांक
कोमल मन की
पंखुड़ियांँ हैंं,
इनको और
संवरने दो ।
ज्ञान पंँख
तुमने फैलाए
इनको और फैलने दो।
पिछला कार्य
पढ़ाई का था
निसंदेह ही अच्छा
मन से अपने
ज्ञानार्जन करता था
हर एक बच्चा ।
सच बतलाऊंँ
थोड़ा सा गर
तुम प्रयास कर जाओ, जीवन कंचन
बन जाएगा
जग में नाम कमाओ।
चंँचलता का
समय बालपन
कोरे कागज जैसा
इस पर जो
लिख दिया
बनेगा उसका जीवन वैसा ।
गुरुजनों से
एक इंतिजा
बस तुम
इतना कर दो ।
चंँचल मन का
खाली कोना
ज्ञानामृत से भर दो।
तुम प्रयास निशदिन करते हो
नूतन ढंँग अपनाते, सदाचार का
पाठ पढ़ाते
खुद करके
दिखलाते ।
सब कुछ तुम पर
निर्भर करता
तुम हो
शिक्षक ज्ञानी ।
थोड़ी सी बस
यही इंतिजा
संयम रखो बानी।
हरिशंकर सिंह सारांश
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