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किसी ने हमको दिया है ये मशवरा बेहतर
जिन्हें ग़ुरूर हो उनसे तो फ़ासला बेहतर
निभे न एक से रिश्ता तो दूसरा बेहतर
हमें बता के गए हैं ये रहनुमा बेहतर
भरो उड़ान तो उड़ते रहो फ़ज़ाओं में
ज़मीं पे रेंगते रहने से वो ख़ला बेहतर
किसी के लाख उठाने पे भी न उठ पाया
सदा-ए-रिंद जो गूॅंजी मैं उठ चला बेहतर
बुझा बुझा के सभी थक गए मगर इक रोज़
चराग़ बन के ज़माने में मैं जला बेहतर
कभी मिलेंगे सनम हम तो बस ये पूछेंगे
हमें तो ख़ाक मिली तुमको क्या मिला बेहतर
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