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नादानियां भी समझदारी से होती थी,
आंखो में हर पल नमी प्यारी सी होती थी,
छोटे पैर जब कूद कर फूल तोड़ते थे, “कुछ हाथ में ,और कुछ जमीन पर होते थे,
ज़मीन पर गिरे टूटे फूल ही सही, पर लौटा दे,
“ऐ जिंदगी” मुझे मेरा बचपन लौटा दे।।
ग़लतियां होते ही डर लगता था,
उल्टी-सीधी चीजों में मन लगता था,
कद से बड़े बल्ले से खेला जाता था, “कभी हंसना और कभी रोना आता था,
बचपन का वो रोना ही सही, पर लौटा दे,
“ऐ जिंदगी” मुझे मेरा बचपन लौ
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