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मत पूछ मेरा मजहब,
बस इतना समझ ले,
मंदिर हो के मस्ज़िद,
गुरुघर हो या गिरजा,
सर झुका के गुजरता हूँ।
©गोपाल भोजक
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मत पूछ मेरा मजहब,
बस इतना समझ ले,
मंदिर हो के मस्ज़िद,
गुरुघर हो या गिरजा,
सर झुका के गुजरता हूँ।
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