
Share1 Bookmarks 39 Reads3 Likes
मैं इठला हुआ हिमालय हूँ
मैं इठला हुआ हिमालय हूँ
जल-जल को मैं ललचाया हूँ
किस दृष्टि से देखों इसको
घिर आने को साँसे रुकती
दीप्ति नवल के चरणों में
मस्तक की आशा शिथिल हुई
गंगा के वेग को झोक दिया
निर्मित क्यों इसका रोक दिया
मैं वरदानों में घिरा हुआ
अभिश्रापों से मैं मुक्त हुआ
चितवन मैं उपवन सूख गया
अक्षत से शिखिर नमन हुआ
मैं इठला हुआ हिमालय हूँ
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments