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मैं इठला हुआ हिमालय हूँ
मैं इठला हुआ हिमालय हूँ
जल-जल को मैं ललचाया हूँ
किस दृष्टि से देखों इसको
घिर आने को साँसे रुकती
दीप्ति नवल के चरणों में
मस्तक की आशा शिथिल हुई
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मैं इठला हुआ हिमालय हूँ
मैं इठला हुआ हिमालय हूँ
जल-जल को मैं ललचाया हूँ
किस दृष्टि से देखों इसको
घिर आने को साँसे रुकती
दीप्ति नवल के चरणों में
मस्तक की आशा शिथिल हुई
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