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बाग़
सूख गया ये बाग़ क्यों ?
निर्लिप्त सा उदासीन क्यों ?
पुष्प रिक्त ये वृक्षहीन जैसे की हो इसकी तौहीन
न मृगनयनी मीन है न वृक्षों की टीन
न शोभित सुगंद है न फलों की जीन
सूख गया ये बाग़ क्यों
निर्लिप्त सा उदासीन क्यों
अतृप्त सी ये भू क्यों चीखती पुकारती
ह्रदय में जलती आग कायर
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