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बाग़
सूख गया ये बाग़ क्यों ?
निर्लिप्त सा उदासीन क्यों ?
पुष्प रिक्त ये वृक्षहीन जैसे की हो इसकी तौहीन
न मृगनयनी मीन है न वृक्षों की टीन
न शोभित सुगंद है न फलों की जीन
सूख गया ये बाग़ क्यों
निर्लिप्त सा उदासीन क्यों
अतृप्त सी ये भू क्यों चीखती पुकारती
ह्रदय में जलती आग कायरों को पुकारती
करुणा फिर इस ह्रदय में विराजती
मातृत से यह तुमको पालती
ह्रदय में तुम शून्य हो
कायरों के वीर हो
निर्लज्जता पहचान है
कार्य ही इतना महान
नेत्रों को खोलो तुम मार्ग की पहचान में
कानों में गूंजता एक ही सवाल है
सूख गया ये बाग़ क्यों ?
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