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मैं बिल्कुल बेकसूर हूं जजसाब
इसमें मेरा बिल्कुल कोई कसूर नहीं
मेरे हाथों से जोभी हुआ जैसेभी हुआ
साराका सारा इन हसीनाओंका कसूर है
मैं क्या करता मुझसे ये ह़ोही गया
और क्यों कैसे न होता जो भी हुआ
मैरी जगह कोई और होता वोभी यही करता
और हमारा किसीकाभी कोई कसूर न होता
इतनी सारी शौख हसीनाएं जो थी इर्दगिर्द
कैसे दिल पे किसका कोई इख्तियार होता
किसको प्यार हो गया कोई शायर बन गया
कोई जानपे खेल गया कोई मजनू बन गया
मेरे हाथों सिर्फ इतनाही हुआ है जजसाब
मैं यह सबकुछ बन गया सिर्फ जान बच गई
सोचता हूं की जानभी चली जाती बेहतर होता
कुछ भी नहीं तो शहीदोंमें नामही हो जाता.
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