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मैं हूं दरिया, मैं ही हूं कश्ती।
मैं ही साहिल और मौजभी।
कैसे बचाऊंगा कश्ती ए नाजूक को।
अपनी अपने भीतरके तूफानौसे।
यह तूफान नहीं है बस में मेरे ।
बेवजह उछलता है बारबार मचलता है।
बाह्र-ए-अमीक-ए-इष्क का तैझ।
हर वक्त मुझे मिटाये जा रहा है।
मेरी मौजे मेरे ही साहिल को।
हल्के से छूके लौट जाती है।
जाते जाते गुदगुदीके बहाने।
पैरों तले जमीन निचोड़ ले जाती है।
डूबती कश्ती, लड़खड़ाता साहिल।
बचना तेरा अब है मुश्किल।
हार तो तेरी तय है इब्न-ए-बब्बन।
तूही तो है तेरा दुश्मन जाहिल।।
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