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मैं जब पैदा हुआ तब मेरा रंग काला था
मेरे बालभी घने काले थे और आंखें भी
अन्दर छोटासा दिल था जो धड़कता था
गहरे लाल रंगका लहू मेरे रंगों में दौड़ता था
मैं था एक इन्सानकी औलाद, दूसरा कुछ नहीं
बाकी इन्सानोंकी औलादों जैसा, अलग कुछ नहीं
ना ज्यादा अच्छा था ना कम बुरा, कुछ कम ज्यादा नहीं
क्यों हिस्सोंमें बांट दिया मुझको, ऐ इन्सानों, पूछाभी नहीं?
किसने दिया मुझको ये मजहब ये जात ये पहचान
किसने पढ़ा दी मुझको ये सोच ये सीख ये जुबान
किसने बनाया मुझको मजहबी, पाक या नापाक
क्या मैं सिर्फ सादा इन्सानका बच्चाही अच्छा ना था?
इब्न-ए-बब्बन
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