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हमनवां


क्या करूं

ना मैं अपने आप को रोक पा रहा हूं

ना उसकी याद दिलसे भूला पा रहा हूं

जितना भी कोशिश करूं उसे भूलाने की

उतना ही ज्यादा मैं उसको याद करूं


क्या करूं

ना उसकी सूरत आंखोसे ओझल कर पा रहा हूं

उसकीही सूरत नजर आए जहांतक नजर लगाऊ

जितनी ज्यादा कोशिश करूं उससे दूर रहनेकी

उतनाही ज्यादा उसके करीब जाता पाऊं


क्या करूं

ना उसकी नजर से अपनी नज़र हटा पा रहा हूं

ना उससे नज़र मिलानेकी हिम्मत जुटा पा रहा हूं

ना अपने दिलसे उसकी चाह मिटा पा रहा हूं

हर पल हर पल उसमेंही उलझता जा रहा हूं


क्या करूं

ये जानते हुए भी की वो अब मेरी नहीं है

ये जानते हुए भी की किसी और की है

ये जानते हुए भी की वो मेरी कभी नही होगी

उससे प्यार करनेकी गुस्ताखी करने जा रहा हूं 


क्या करूं

मुझे तुम से फिर से प्यार होता जा रहा है

जो बात पहले कभी ना बता सका था

वोही बात एक बार कहना चाह रहा हूं

एक बार इज़हार-ए-प्यार करना चाह रहा हूं


वो इज़हार करें या ना करें, मैं मांगू तोभी मन्जूर ना करें 

कहीं ऐसा न हो की मैं फिर से बहक जाऊं

मैं इतना ही चाहूं मुझे प्यार करने से ना रोके

हमसफ़र ना बनी तो ना सही, मेरी हमनवां तो बनें


इब्न ए बब्बन

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