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थोड़ा जरूरत से ज्यादा बोलूं तो माफी हो,
जो भी बोलूं सच बोलूं तो माफी हो।।
ये अर्शों के तारे, कहां किस्मत में हमारे?
बे उम्मीद होकर जमीन पर सोलूं तो माफी हो।।
कैसे ना हो असर हम पे तेरी संगत का बता मुझे?
मैं भी तेरे जैसा कभी होलूं तो माफी हो।।
कब तक काटे हम चैत आषाढ़ किसी और का
कभी खुद का भी कुछ बो दूं तो माफी हो।।
थोड़ा तो ग़म रहेगा ही मेरे दिल के आईने में
बीते वक़्त के अक्स में रो दूं तो माफी हो।।
कब तक अकेला रोएगा यह आसमान मेरे लिए
मैं भी कभी अश्क जो दरिया में डोलूं तो माफी हो।।
हर राज़ ए संदूक खुल रहा है इस बाजार में
मेरे क़ातिल कुछ राज़ तेरे भी खोलूं तो माफी हो।
वो पड़ कर गीता कुराने नहीं रहे गुनहगार किसी के
मैं भी चेहरे से गर दाग़ धोलूं तो माफी हो।।
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