डॉ. राम मनोहर लोहिया की किताब भारत विभाजन के गुनाहगार, विभाजन पर लिखी सबसे जरूरी किताबों में से एक है। भारत विभाजन की त्रासदी की कहानी सबने कभी न कभी सुनी होगी। लाखों लोग इधर से उधर हुए तो हजारों ने अपनी जान भी गंवाई। विस्थापन की इस प्रक्रिया ने जो जख्म दिये, उसे कभी कोई दवा भर नहीं सकती। विभाजन की ऐसी विभीषिका और भयानकता को कल्पना में भी पूर्णतः चित्रित नहीं किया जा सकता। चूंकि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विभाजन को अनिवार्य मानकर स्वीकार किया था। ऐसे में विभाजन के कारणों की तह में न जाना अथवा उस पर अधिक विचार न होना उस समय की सत्ता के हित में था। सम्भवतः इसीलिए देश में विभाजन पर बहुत अधिक लिखा नहीं गया और न ही विभाजन की समीक्षा को आवश्यक समझा गया। परन्तु स्वीकार न करने से वास्तविकता बदल तो नहीं जाती।
वर्ष 1959 में भी धर्म के आधार पर भारत का अतार्किक और बेमेल विभाजन सत्ता के कर्णधारों और तत्कालीन राजनीतिक पुरोधाओं का आजादी के पहले दिन की भांति उसी प्रकार पीछा कर रहा था। ऐसे समय में डॉ. लोहिया को मौलाना अबुल कलाम आजाद की पुस्तक इण्डिया विन्स फ्रीडम को पढ़ने का अवसर मिला। मौलाना आजाद के गिनाए गए विभाजन के कारणों को आधार बनाकर डॉ. लोहिया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक भारत विभाजन के गुनाहगार लिखी और मौलाना आजाद के उल्लिखित सभी कारणों को लगभग अस्वीकार कर दिया। डॉ. लोहिया विभाजन के मुख्यतः आठ कारण बताते हैं- ब्रिटिश कपट नीति, कांग्रेस नेतृत्व का ढलान, हिन्दू मुस्लिम दंगे, जनता में दृढ़ता और सामर्थ्य का अभाव, गांधी जी की अहिंसा, मुस्लिम लीग की फूट-नीति, आए हुए अवसरों से लाभ उठाने की असमर्थता और हिन्दू अहंकार।
लेखक के अनुसार दक्षिण राष्ट्रवादियों ने विभाजन का विरोध किया और वामपंथियों ने विभाजन का समर्थन किया परन्तु दोनों का जनता पर विशेष प्रभाव न होने के कारण उनका मत महत्वहीन था। पूरी पुस्तक में डॉ. लोहिया कांग्रेस नेतृत्व विशेषकर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर विशेष हमलावर रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व को उन्होंने पदलोलुप, आरामपसंद तथा बूढ़ा बताया है। एक जगह वे कहते हैं– ऐसे छोटे लोग राष्ट्रीय मामलों में इतनी बड़ी भूमिका कैसे अदा कर पाए? मेरे पास इसकी कोई व्याख्या नहीं है, सिवाय इसके कि युगपुरुष के वशीकरण, चमत्कार और उसके स्पर्श का इन आदमियों पर असर पड़ा। अन्यथा ये साधारण से भी छोटे आदमी हैं। हालांकि कांग्रेस के स्वाधीनता संघर्ष को वे अस्वीकार नहीं करते पर उनके अनुसार थके हुए और बूढ़े हो चुके नेतृत्व में सत्ता भोगने की लालसा जन्म ले चुकी थी जो कि विभाजन का प्राथमिक कारण बनी।
लोहिया एक जगह लिखते हैं कि विभाजन के तुरंत बाद मैं दिल्ली के गोल बाजार में भाषण दे रहा था कि जल्द ही भारत व पकिस्तान मिलकर हिन्दुस्तान बनेगा। बाद में अपने कथन को स्वयं अस्वीकार करते हुए वे कहते हैं कि
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