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हमारा ग़म कभी समझेंगे, ये जमाने वाले लोग
यहीं पर बैठे हैं सारे, मुझको फंसाने वाले लोग।
होंशियार रहना है अब मुझे, हर वक्त कोई कहा,
पीठ पीछे क्या कर दें, ये तीर चलाने वाले लोग।
कभी जान न्यौछावर किया था, मैने जिस पर,
वही दोस्त हैं निकले, मुझको डुबाने वाले लोग।
शायद! अब कोई शायर ना बने, फ़िर से मेरे बाद,
पैसा नही है सब समझ लें छोड़कर जाने वाले लोग।
© गणेश गोरखपुरी
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