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इन ज़ुल्फ़ों को ज़रा सा चाँद से, मैं हटा दूँ क्या | 

ग़ुलाबी होंठ हँस जाएं , सुना दूँ मैं लतीफ़ा क्या | 

दिल -ऐ-मकाँ ख़ाली हो, तो क़िस्मत आज़मा लूँ मैं | 

तेरी ख़ामोश शामों को ,फ़कत महफ़िल बना दूँ क्या || 


एस वी लख़नवी

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