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ग़ज़ल ( चंद अश’आर )
तेवर उनके…. अब नरम होने लगे हैं ।
आँखों को यह….. भरम होने लगे हैं ।।
कभी जो होते थे शोख़ और पाकीज़ा ।
रंग वो……. अब बेशरम होने लगे हैं ।।
नज़रें फ़ेर लेने में…. उन्हें महारत थी ।
अब मुझ पर उनके करम होने लगे हैं ।।
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