रंगों की फितरत's image
Romantic PoetryPoetry1 min read

रंगों की फितरत

Dr Wasif QuaziDr Wasif Quazi May 12, 2023
Share0 Bookmarks 4 Reads0 Likes

ग़ज़ल ( चंद अश’आर )

तेवर उनके…. अब नरम होने लगे हैं ।

आँखों को यह….. भरम होने लगे हैं ।।


कभी जो होते थे शोख़ और पाकीज़ा ।

रंग वो……. अब बेशरम होने लगे हैं ।।


नज़रें फ़ेर लेने में…. उन्हें महारत थी ।

अब मुझ पर उनके करम होने लगे हैं ।।


उनको चाहा , उनका ऐहतराम किया ।

मेरे लिए वो ईमान-धरम होने लगे हैं ।।


यूं तो ख़ामुश तबीयत हैं काज़ी लेकिन ।

मिरी ख़ामुशी पर वो गरम होने लगे हैं ।।



©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर

©काज़ीकीक़लम


No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts